कश्ती भी बह रही थी
शायद किसी और से बढ़ रही थी !
किसी चौर से रूठ गई थी !!
पतंग डोल रही थी हवा में
शायद पास से दूर जा रही थी !
दूर होकर पास होने का सुख बाँट रही थी !!
पंख कांट रहे थे हवा के बहाव को
शायद उड़ रहा था गरुड़ मंजिल पाने !
या छुपा रहा था आंसू, जिंदगी के वह गाने, अनकहे अंजाने !!
जिंगदी भी तोह बहती रहती है
शायद चलते रहना ऊसुल है !
सिखलाती रहती है !!
मैं रुक जाता हूँ कुछ देर
वह पल याद आतें हैं !
जिंदगी कठोर थी तब, अब नहीं
बीतें सुरों को दोहराता हूँ !!
शाम ढल रही है
मैं इंतज़ार करता हूँ !
कल फिर नई सुबह होगी
मुस्कुराये, इन पलों को गले लगता हूँ !!
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