Tuesday 22 October 2019

तुम भी चुप रहो

तुम भी चुप रहो, हम भी चुप रहें । आँखें बंद करे, शायद कुछ देर शांती बनी रहें । न जाने इस उलझन को, कैसे सुलझाया जाय । अष्क़ भरी पल्कों को जाने कैसे सहलाया जाय । कुछ तो बात होगी, कुछ तो नतीजे होंगे । हम् ने तो ढूंढे बहोत, सुराग तुमने भी तो छोड़े होंगे । इस हालात पे, तरस नही ख़ाना चाहते । दिल लगायें बैठें हैं, हम अकेले जिंदगी गवाना नही चाहते । चाहते हैं के जनाजे से पहले, एक जीवन ऐसे जिया जाय । तुम चुप भी रहो, और हम सब समझ जाय ।

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